लालू यादव का मॉडल या सोनिया गांधी वाला फॉर्मूला, सीएम सोरेन के पास 3 विकल्प !

jharkhand political crisis

सार
चुनाव आयोग के सीलबंद लिफाफे में बंद हेमंत सरकार की किस्मत के फैसले पर सबकी नजर टिकी हुई है. Jharkhand Politics के इस खेल में तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. मगर इतना तो साफ है कि सत्तारूढ़ यूपीए के लिए सत्ता बचाकर रखना प्रतिष्ठा की बात है, जिसके लिए हर तरह के विकल्प यूपीए के अंदरखाने में तलाश लिए गये हैं.

Ranchi : सीएम सोरेन की विधायकी पर संकट है। पत्थर खनन लीज आवंटन मामले में उनके खिलाफ शिकायत को लेकर चुनाव आयोग ने अपनी सिफारिश राज्यपाल रमेश बैस को भेज दिया है। राज्यपाल अपना फैसला हेमंत सोरेन के खिलाफ सुनाते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी इस्तीफा देना होगा। इसके साथ ही इस बात की अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि झारखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा। राजनीतिक जानकारों की मानें तो हेमंत सोरेन के पास कम से कम 3 ऐसे रास्ते बचे हुए हैं, जिससे सत्ता उनके पास या उनके परिवार के पास ही रहेगी। दिलचस्प यह है कि उनके गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के मुखिया 2 रास्तों का इस्तेमाल कर चुके हैं।

लालू वाला मॉडल अपनाएंगे?
अटकलें है कि हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री पद पर बिठा सकते हैं। वैसे तो उनके भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं, लेकिन उनके खिलाफ भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस चल रहा है, जिसमें 29 अगस्त को फैसला आ सकता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का विकल्प भी मौजूद हैं, लेकिन उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री यह पद नहीं ग्रहण करेंगे। ऐसे में हेमंत सोरेन के पास ‘लालू मॉडल’ का एक विकल्प है कि वह अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सत्ता सौंप दें, जिस तरह कभी चारा घोटाले में जेल जाते समय बिहार के पूर्व सीएम ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को कुर्सी पर बिठा दिया था।

सोनिया गांधी के फॉर्मूल से खुद बन सकते हैं सीएम
हेमंत सोरेन के पास महागठबंधन सहयोगी कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष वाला फॉर्मूला भी मौजूद है। यदि उन्हें चुनाव लड़ने से रोका नहीं जाता है तो वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इसके तहत हेमंत सोरेन को इस्तीफे के बाद महागठबंधन के विधायक उन्हें अपना नेता चुन सकते हैं। इसके बाद सोरेन को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी होगी और छह महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। बरहैत सीट उपचुनाव होगा में वह उम्मीदवार बन सकते हैं। गौरतलब है कि 2006 में यूपीए-1 की सरकार के समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप लगा था। वह सासंद के साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थीं। इसके बाद उन्हें रायबरेली सांसद के रूप में इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन वह दोबारा इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंची थीं।

कोर्ट का भी कर सकते हैं रुख
हेमंत सोरेन के पास एक तीसरा विकल्प कोर्ट जाने का भी है। वह राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, झामुमो सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस विकल्प पर विचार नहीं कर रही है।

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