सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे को गिराने का आदेश दिया है। वहां से करीब 4 हजार से ज्यादा परिवार रहते हैं। कोर्ट ने कहा कि अब उस जमीन पर कोई कंस्ट्रक्शन और डेवलपमेंट नहीं होगा। हमने इस पूरी प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। केवल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई है।
वहीं इस पर SC ने पूछा कि उत्तराखंड या रेलवे की तरफ से कौन है? रेलवे का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत को बताया कि कुछ अपील पेंडिंग हैं. लेकिन किसी भी मामले में कोई रोक नहीं है. SC ने कहा कि लोग कई वर्षों से वहां रह रहे हैं. उनके पुनर्वास के लिए कोई स्किम आप महज 7 दिनों का वक़्त दे रहे हैं और कह रहे हैं खाली करो. यह मानवीय मामला है. कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की जरूरत है. उत्तराखंड सरकार की तरफ से कौन है? सरकार का स्टैंड क्या है इस मामले में शीर्ष अदालत ने पूछा कि जिन लोगों ने नीलामी में जमीन खरीदा है, उसे आप कैसे डील करेंगे. लोग 50/60 सालों से वहां रह रहे हैं. उनके पुनर्वास की कोई योजना तो होनी चाहिए. SC ने कहा कि 50,000 लोगों को रातोंरात नहीं उजाड़ा जा सकता है.
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी से कहा, ऐसा नही है कि आप विकास के लिए अतिक्रमण हटा रहे हैं. आप सिर्फ अतिक्रमण हटा रहे हैं. रेलवे ने अपने जवाब में कहा, यह फैसला रातों-रात नही हुआ. नियमों का पालन हुआ है. यह मामला अवैध खनन से शुरू हुआ था. याचिकाकर्ताओं के वकील कोलिन ने कहा, जमीन का बड़ा हिस्सा प्रदेश सरकार का है. रेलवे की जमीन कम है. जस्टिस कौल ने कहा, हमें ये मामले को सुलझाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण अपनाना होगा. कुछ लोगों के पास 1947 से पहले के भी पट्टे हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि इस मामले में कुछ लोगों ने नीलामी में जमीनें खरीदी हैं. लोगों से 7 दिनों में भूमि खाली कराने का फैसला सही नहीं है. वहीं इसके साथ SC की दो सदस्यीय पीठ ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, रेलवे और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया.